Book Title: Jain Yog Granth Chatushtay
Author(s): Haribhadrasuri, Chhaganlal Shastri
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 352
________________ अनशन शुद्धि में आत्म-पराक्रम | २६५ है कि यदि कोई स्वप्न में अपने को कुत्ते, गीध, कौए का दूसरे निशाचर प्राणियों द्वारा खाया जाता देखे अथवा गधे, ऊंट आदि पर अपने को सवार देखे तो उसकी (एक वर्ष में) मृत्यु हो जाती है।' ज्ञातव्य है कि मृत्यु के समय की जानकारी उस समय विशेष उपयोगी तथा हितावह होती है, जब व्यक्ति आमरण अनशन स्वीकार किये हुए अत्यन्त शुद्ध परिणामों के साथ मृत्यु का स्वागत करने को उद्यत हो । मृत्यु के ठीक समय का ज्ञान होने पर उसका मनोबल मजबूत होता है, आत्मपरिणाम और सस्थिर बनते हैं। क्योंकि उसके समक्ष यह तथ्य प्रकट रहता है कि इतने से समय के लिए उसे इस देह से इस जगत् में और रहना है । यह थोड़ा-सा समय, जो उसके हाथ में है, जितने उज्ज्वल, निर्मल एवं पवित्र परिणामों के साथ व्यतीत करेगा, उतना ही वह सौभाग्यशाली होगा, वह धन्य हो जायेगा। अनशन-शुद्धि में आत्मपराक्रम [ ६९ ] . अणसणस द्धीए इहं जत्तोऽतिसएण' होइ काययो। जल्लेसे मरइ जओ तल्लेसेसुं तु उववाओ ॥ अनशन स्वीकार करने के बाद उसकी शु िहेतु साधक को विशेष प्रयत्नशील रहना चाहिए। क्योंकि कोई व्यक्ति जिस लेश्या-अध्यवसाय या परिणामों की धारा में प्राण छोड़ता है, वह वैसे ही लेश्यायुक्त स्थान में उत्पन्न होता है। लेसा य वि आणाजोगओ उ आराहगो इहं नेओ। इहरा असई एसा वि हंतऽणाइम्मि संसारे ॥ उत्तम लेश्या में आज्ञायोग-जिन महापुरुषों ने जीवन में सत्य का साक्षात्कार किया, उनके अनुभव-प्रसूत पथ दर्शनरूप शास्त्र द्वारा निरूपित २ स्वप्ने स्वं भक्ष्यमाणं श्वगृध्रकाकनिशाचरैः। उह्यमानं खरोष्ट्राधर्यदा पश्येत्तदा मृतिः ।। -योगशास्त्र ५. १३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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