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योग का माहात्म्य | EP
[ ३८ ] तथा च जन्मबोजाग्निर्जरसोऽपि जरा परा । दुःखानां राजयक्ष्माऽयं मृत्योर्मृत्युरुदाहृतः ॥
जन्म रूपी बीज के लिए योग अग्नि है-संसार में बार-बार जन्म-. मरण में आने की परंपरा को योग नष्ट करता है । वह बुढ़ापे का भी बुढ़ापा है। योगी कभी वृद्ध नहीं होता---वृद्धत्व-जनित अनुत्साह, मान्द्य, निराशा योगी में व्याप्त नहीं होती । योग दु:खों के लिए राजयक्ष्मा है। राजयक्ष्मा-क्षय रोग जैसे शरीर को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार योग दुःखों का विध्वंस कर डालता है। योग मृत्यु की भी मृत्यु है। अर्थात् योगी कभी मरता नहीं। क्योंकि योग आत्मा को मोक्ष से योजित करता है। मुक्त हो जाने पर आत्मा का सदा के लिए जन्म, मरण से छुटकारा हो जाता है।
[ ३६ ] कुण्ठीभवन्ति तीक्ष्णानि मन्मथास्त्राणि सर्वथा । योगवर्मावृते चित्ते तपश्छिद्रकराण्यपि ॥
योग रूपी कवच से जब चित्त ढका होता है तो काम के तीक्ष्ण अस्त्र, जो तप को भी छिन्न-भिन्न कर डालते हैं, कुण्ठित हो जाते हैं-योगरूपी कवच से टकराकर वे शक्तिशून्य तथा निष्प्रभाव हो जाते हैं ।
[ ४० ] अक्षरद्वयमप्येतत् श्रूयमाणं विधानतः । गीतं पापक्षयायोच्चर्योगसिद्ध महात्मभिः ॥
योगसिद्ध महापुरुषों ने कहा है कि यथाविधि सुने हुए-आत्मसात् किये हुए 'योग' रूप दो अक्षर सुनने वाले के पापों का क्षय-विध्वंस कर डालते हैं।
[ ४१ ] मलिनस्य यथा हेम्नो वह्नः शुद्धिनियोगतः। योगाग्नेश्चेतसस्तद्वदविद्यामलिनात्मनः
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