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१६८ | योगबिन्दु कारण अतीत में आचीर्ण विभिन्न प्रकार के कर्म हैं, जो वर्तमान में हितकर या अहितकर-सद्भाग्य या दुर्भाग्य, सफलता या विफलता के रूप में प्रकट होते हैं।
[ ३२३ ] एवं पुरुषकारस्तु व्यापारबहुलस्तथा । फलहेतुनियोगेन ज्ञेयो जन्मान्तरेऽपि हि
जीवन में किये जाने वाले अनेक प्रकार के कार्य पुरुषार्थरूप हैं, जो अवश्य ही दूसरे जन्म में भी फल देते हैं ।
[ ३२४ ] अन्योन्यसंश्रयावेवं द्वावप्येतौ विचक्षणः ।
उक्तावन्यैस्तु कर्मेव केवलं कालभेदतः ॥
भाग्य तथा पुरुषार्थ अन्योन्याश्रित हैं—एक दूसरे पर टिके हुए हैं, ऐसा विज्ञ पुरुषों ने बताया है। कई अन्य पुरुषों ने केवल कर्म को ही कालभेद से फलप्रद कहा है। उनके अनुसार इसका अभिप्राय यह है कि सभी कार्यों में काल के अनुसार कर्म अनुकूल या प्रतिकूल भाव प्राप्त करता है।
[ ३२५ ] देवमात्मकृतं विद्यात् कर्म यत् पौर्वदेहिकम् ।
स्मृतः पुरुषकारस्तु क्रियते यदिहापरम् ॥
पूर्वदेह-पूर्व जन्म में अपने द्वारा किया गया कर्म दैव-भाग्य कहा जाता है । वर्तमान जीवन में जो कर्म किया जाता है, वह पुरुषकार या पुरुषार्थ कहा जाता है।
[ ३२६ ] नेदमात्मक्रियाभावे यतः स्वफलसाधकम् । अतः पूर्वोक्तमेवेह लक्षणं तात्त्विकं तयोः पूर्वजन्म में किया गया कर्म वर्तमान में क्रिया के अभाव में-क्रिया
॥
पर तयाः
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