________________
१७
অনুচ্চমঠাতা
योगदृष्टि समुच्चय मंगलाचरण
१ दीप्रा दृष्टि इच्छायोग, शास्त्रयोग, सामर्थ्ययोग १ स्थिरा दृष्टि योग दृष्टियाँ
४ कान्ता दृष्टि ओघ दृष्टि
४ प्रभा दृष्टि योग दृष्टियों का स्वरूप ५ परा दृष्टि मित्रा दृष्टि
६ मुक्ततत्त्व मीमांसा तारा दृष्टि
१२ कुलयोगी आदि का स्वरूप बला दृष्टि
५५
५६
१६२
मंगलाचरण योग : असंकीर्ण साधना-पथ योग के भेद योग का महात्म्य अध्यात्म लोकपक्ति गोपेन्द्र का अभिमत पूर्वसेवा असदनुष्ठान सदनुष्ठान बन्ध-विचार अध्यात्म--जागरण अपुनर्बन्धक स्वरूप भिन्नग्रन्थि विधा शुद्ध अनुष्ठान सम्यक् दृष्टि स्वरूप तीन करण .
योगबिन्दु ८१ सम्यक दृष्टि और बोधिसत्त्व १५४ ८१ कालातीत का मन्तव्य ८६ भाग्य तथा पुरुषार्थ ६० चारित्री ६६ ध्यान १०२ समता १०६ तात्त्विक : अतात्त्विक १८६ १०६ सास्रव : अनास्रव १२२ उपसहार
१८६ १२४ जप
१८७ १२५ योग्यतांकन
१८६ १२७ देव-वादन
१६१ १२८ प्रतिक्रमण
१६२ १३५ भावनानुचिन्तन १३७ वृत्तिसंक्षय
१६४ १४६ सर्वज्ञवाद
२०२ . १५२ परिणामित्व
२२५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org