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योगबिन्दु
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मंगलाचरण
[ १-२ ] नत्वाऽऽद्यन्तविनिर्मुक्तं शिवं योगीन्द्रवन्दितम् । योगबिन्दु प्रवक्ष्यामि तत्त्वसिद्ध यै महोदयम् ॥ सर्वेषां योगशास्त्राणामविरोधेन तत्वतः ।
सन्नीत्या स्थापकं चैव मध्यस्थांस्तद्विदः प्रति ॥
अनादि-अनन्त, उत्तम योगिजन द्वारा वन्दित-पूजित, शिव-कल्याणरूप परमात्मा को नमस्कार कर माध्यस्थ्य-वृत्ति युक्त-संकीर्ण पक्षपात रहित योग-वेत्ताओं, योग-जिज्ञासुओं के लिए सभी योगशास्त्रों से अविरुद्ध -सभी परंपराओं के योग-ग्रन्थों के साथ समन्वित, उत्तम योग-मार्ग के उन्नायक योगबिन्दु नामक ग्रन्थ का तत्त्व-प्रकाशन हेतु प्रणयन करूगा। योग : असंकीर्ण साधना-पथ
[ ३ ] मोक्षहेतुर्यतो योगो भिद्यते न ततः क्वचित् ।
साध्याभेदात् तथाभावे तूक्तिभेदो न कारणम् ॥
योग मोक्ष का हेतु है । परम्पराओं की भिन्नता के बावजूद मूलतः उसमें कोई भेद नहीं है। जब सभी के साध्य या लक्ष्य में कोई भेद नहीं है, वह एक समान है, तब उक्ति-भेद-कथन-भेद या विवेचन की भिन्नता वस्तुतः उसमें भेद नहीं ला पाती।
मोक्षहेतुत्वमेवास्य किंतु यत्नेन धीधनैः । सद्गोचरादिसंशुद्ध मृग्यं स्वहितकांक्षिभिः ॥ .. योग मोक्ष का हेतु है । वह शुद्ध ज्ञान तथा अनुभव पर आधृत है
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