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४ | योगदृष्टि समुच्चय
योग-दृष्टियां
[ १२ ] एतत् त्रयमनाश्रित्य विशेषेणैतदुद्भवाः । योगहष्टय उच्यन्त अष्टौ सामान्यतस्तु ताः ॥
इन तीनों-इच्छायोग, शास्त्रयोग तथा सामर्थ्य योग का सीधा आधार लिए बिना, पर उन्हीं से विशेष रूप से निःसृत दृष्टियाँ योगदृष्टियाँ कही जाती हैं। वे सामान्यतः आठ प्रकार की हैं।
[ १३ ] मित्रा तारा बला दीप्रा स्थिरा कान्ता प्रभा परा । नामानि योगहष्टीनां लक्षणं च निबोधत ॥
उन आठ योगदृष्टियों के नाम इस प्रकार हैं-१. मित्रा, २. तारा, ३. बला, ४. दीप्रा, ५. स्थिरा, ६. कान्ता, ७. प्रभा तथा ८. परा। उनके लक्षण समझिए। ओघ-दृष्टि
[ १४ ] समेघामेघराज्यादौ सग्रहाद्यर्भकादिवत् ।
ओघडष्टिरिह ज्ञया मिथ्यादृष्टीतराश्रया ॥
बादल भरी रात, बादलों से शून्य रात, बादल सहित दिवस, बादल रहित दिवस, ग्रह-पीड़ित दर्शक, ग्रह बाधा रहित स्वस्थ दर्शक, बाल दर्शक, वयस्क दर्शक, मोतियाबिन्द आदि से उपहत नेत्र दर्शक, अनुपहत नेत्र दर्शक-इन आपेक्षिक भिन्नताओं के कारण जैसे वस्तु-दर्शन में विशदता की दृष्टि से तरतमता, न्यूनाधिकता होती है, उसी तरह ओघ-दृष्टिसंसार-प्रवाह-पतित दृष्टि-सामान्य दृष्टि भिन्न-भिन्न प्रकार की है।
(ओघ-दृष्टि से ऊपर उठकर साधक योग-दृष्टि में प्रवेश करता है।)
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