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आदि प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं । इनमें हठयोग प्रदीपिका मुख्य है । उक्त ग्रन्थों में आसन, बन्ध, मुद्रा, षट्कर्म, कुम्भक, रेचक, पूरक आदि बाह्य अंगों का दिल खोलकर वर्णन किया है । घेरण्ड ने आसनों की संख्या को ८४ से ८४ लाख तक पहुँचा दिया है ।
संस्कृत के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं में भी योग पर कई ग्रन्थ लिखे गये हैं । महाराष्ट्री भाषा में गीता की ज्ञानदेव कृत ज्ञानेश्वरी टीका प्रसिद्ध है । इसके छठे अध्याय में योग का बहुत सुन्दर वर्णन किया गया है ।
संत कबीर का 'बीजक ग्रन्थ' योग विषयक भाषा-साहित्य का अनूठा नगीना । अन्य योगी सन्तों ने भी अपने योग-सम्बन्धी अनुभवों का जन-भाषा में जन-हृदय पर अंकित करने का प्रयत्न किया है । अतः हिन्दी, गुजराती, मराठी, बंगला आदि प्रसिद्ध प्रान्तीय भाषाओं में पातञ्जल योग- शास्त्र के अनुवाद तथा विवेचन निकल 'चुके हैं। अंग्रेजी एवं अन्य विदेशी भाषाओं में भी योग - शास्त्र का अनुवाद हुआ है, जिसमें वुड ( Wood) का भाष्य टोका सहित मूल पातञ्जल योग- शास्त्र का अनुवाद महत्त्वपूर्ण है ।
पातञ्जल योग सूत्र
वैदिक साहित्य के विस्तृत अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया कि इसमें योग पर छोटे बड़े अनेक ग्रन्थ हैं । परन्तु इन उपलब्ध ग्रन्थों में-- जैसा कि हम ऊपर कह चुके पातञ्जल योग सूत्र शीर्ष स्थान रखता है । इसके मुख्य तीन कारण हैं- १. ग्रन्थ की संक्षिप्तता तथा सरलता, २. विषय की स्पष्टता एवं पूर्णता, और ३ अनुभव - सिद्धता । इन विशेषताओं के कारण ही योग-दर्शन का नाम सुनते ही पातञ्जल योग-सूत्र स्मृति में साकार हो उठता है । योग विषयक साहित्य एवं दर्शन ग्रन्थों का अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि पातञ्जल योग सूत्र के समय अन्य योग शास्त्र भी इतने ही प्रसिद्ध रहे हैं और वे योग शास्त्र के नाम से लिखे गये थे । आचार्य शंकर ने ब्रह्मसूत्र भाष्य में योग दर्शन का खण्डन करते हुए लिखा है - अथ - सम्यग्दर्शनाभ्युपायो' योगः । 1 इस सूत्र से यह स्पष्ट होता है कि भाष्यकार के सामने पातञ्जल सूत्र से भिन्न योग - शास्त्र भी रहा है । क्योंकि पातञ्जल योगसूत्र--- अथ योगानुशा सनम रे सूत्र से शुरू होता है । इसके अतिरिक्त आचार्य शंकर ने अपने भाष्य में योग से सम्बन्धित दो सूत्रों का और उल्लेख किया है, जिनमें से एक सूत्र तो पातञ्जल योग सूत्र का पूरा सूत्र है ।" और दूसरा अविकल सूत्र तो नहीं, परन्तु उससे मिलता
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ब्रह्मसूत्र शांकर भाष्य, २, १, ३. योग-सूत्र १.१
- महर्षि पतंजलि. १,१. स्वाध्यायादिष्टदेवतासंप्रयोगः; प्रमाण - विपर्यय-विकल्प निद्रा- स्मृतयो नाम । - ब्रह्मसूत्र शांकर भाष्य, १, ३, ३३, २, ४, १२.
देखें पातञ्जल योग सूत्र, २,४.
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