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३. संसार और मोक्ष का स्वरूप
___ योग-शास्त्र में वासना, क्लेश और कर्म को 'संसार' कहा है और उसके अभाव को 'मोक्ष' ।' संसार का मूल कारण अविद्या और मुक्ति का मुख्य कारण सम्यग्दर्शन या योग-जन्य विवेक माना है। योग-सूत्र और जैन दर्शन में समानता
योग-सूत्र का अन्य दर्शनों की अपेक्षा जैन दर्शन के साथ अधिक साम्य है। फिर भी बहुत कम विचारक इस बात को जान-समझ पाये हैं। इसका एक ही कारण है कि ऐसे बहुत कम जैन विचारक, दार्शनिक एवं विद्वान हैं, जो उदार हृदय से योग सूत्र का अध्ययन करने वाले हों और योग-सूत्र पर अधिकार रखने वाले ऐसे ठोस विद्वान् भी कम मिलेंगे, जिन्होंने जैन-दर्शन का गहराई से अनुशीलन-परिशीलन किया हो । यही कारण है कि जैन-दर्शन और योग-सूत्र में बहुत साम्य होने पर भी वैदिक एवं जैन-विचारक इससे अपरिचित से रहे हैं। योग-सूत्र और जैन-दर्शन में समानता तीन तरह की है-१ शब्द की, २ विषय की, और ३ प्रक्रिया की। १ शब्द साम्य
योग-सूत्र एवं उसके भाष्य में ऐसे अनेक शब्दों का प्रयोग मिलता है, जो जैनेतर दर्शनों में प्रयुक्त नहीं है, परन्तु जैन-दर्शन एवं जैनागमों में उनका विशेष रूप से प्रयोग हुआ है । जैसे
भवप्रत्यय, सवितर्क-सविचार-निविचार,३ महाव्रत, कृतकारित-अनुमोदित,५
१ पातञ्जल योग-सूत्र, १, ३ । २ (क) भवप्रत्ययो विदेहप्रकृततिलयानाम्
पातञ्ज्लयोग-सूत्र १, १६ (ख) भवप्रत्ययो नारक-देवानाम् ।
तत्त्वार्थसूत्र, १, २२ (ग) नन्दी-सूत्र ७, स्थानांग सूत्र २, १, ७१. ३ (क) एकाश्रये सवितर्के पूर्वे; तत्र सविचारं प्रथमम् (भाष्य) अविचारं द्वितीयम् ।
-तत्त्वार्थ सूत्र ९, ४३-४४; स्थानांग सूत्र, (वृत्ति) ४, १, २४७. (ख) तत्र शब्दार्थ-ज्ञान-विकल्पैः संकीर्णा सवितर्का समापत्तिः; स्मृति-परि
शुद्धौ स्वरूपशून्ये वार्थमात्रनिर्भासा निवितर्का; एतयैव सविचारा निर्विचारा च सूक्ष्मविषया व्याख्याता।
-पातञ्जल योग सूत्र १, ४२,४४. ४ जनागमों में मुनि के पाँच यमों के लिए महाव्रत शब्द का प्रयोग हुआ है।
देखें --स्थानांग सूत्र, ५, १, ३८६ तत्त्वार्थ सूत्र, ७, २. यही शब्द योग सूत्र में भी उसी अर्थ में आया है।
____-योगसूत्र २, ३१. ५ ये शब्द जिस भाव के लिए योग सूत्र २, ३१ में प्रयुक्त हैं, उसी भाव में जैनागम
में भी मिलते हैं। जैनागमों में अनुमोदित के स्थान में प्राय: अनुमित शब्द प्रयुक्त हुआ है।
-तत्त्वार्थ ६,६; दशवैकालिक, अध्ययन ४.
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