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साधना का सांगोपांग वर्णन मिलना सहज स्वाभाविक है । वैदिक साहित्य में महर्षि पतंजलि का योगसूत्र ही योग विषयक सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है |
उपनिषदों में सूचित और दर्शन - साहित्य में वर्णित योग-साधना का पल्लवित - पुष्पित रूप गीता में मिलता है । वस्तुतः देखा जाय तो गीता युद्ध के मैदान में उपदिष्ट योग-विषयक ग्रन्थ है ।" उसमें योग का विभिन्न तरह से वर्णन किया गया है । उसमें योग का स्वर कभी कर्म के साथ, कभी भक्ति के साथ और कभी ज्ञान के साथ सुनाई देता है। गीता के छठे और तेरहवें अध्याय में तो योग के सब मौलिक सिद्धान्त और योग की समस्त साधना का वर्णन आ जाता है ।
योगवासिष्ठ में योग का विस्तृत वर्णन किया गया है। उसके छह प्रकरणों में योग के सब अंगों का वर्णन है । योग दर्शन में योग के सम्बन्ध में जो वर्णन संक्ष ेप से किया गया है, उसी का विस्तार करके ग्रन्थकार ने योगवासिष्ठ के आकार को बढ़ा दिया है । इससे यही कहना पड़ता है कि योगवासिष्ठ योग का महाग्रन्थ है ।
पुराण - साहित्य में सर्व शिरोमणि भागवत पुराण का अध्ययन करें, तो उसमें भी योग का पूरा वर्णन मिलता है ।
भारत में योग का इतना महत्त्व बढ़ा कि सभी विचारक इस पर चिन्तन करने लगे । तान्त्रिक सम्प्रदाय ने भी योग को अपने तन्त्र-ग्रन्थों में स्थान दिया । अनेक तन्त्र-ग्रन्थों में योग का वर्णन मिलता है । परन्तु, महानिर्वाण तन्त्र और षट्चक्रनिरूपण मुख्य ग्रन्थ हैं, जिनमें योग-साधना का विस्तार से वर्णन मिलता है । "
मध्य युग में योग का इतना तीव्र प्रवाह बहा कि चारों ओर उसी का स्वर सुनाई देने लगा । आसन, मुद्रा, प्राणायाम आदि योग के बाह्य अंगों पर इतना जोर दिया गया कि योग का एक सम्प्रदाय ही बन गया, जो हठयोग के नाम से प्रसिद्ध रहा है । आज उस सम्प्रदाय का कोई अस्तित्व नहीं है । केवल इतिहास के पन्नों पर ही उसका नाम अवशेष है ।
हठयोग के विभिन्न ग्रन्थों में हठयोग प्रदीपिका, शिव-संहिता, घेरण्ड संहिता, गोरक्ष-पद्धति, गोरक्ष- शतक, योगतारावली, बिन्दु-योग, योग-बीज, योग- कल्पद्र ु
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गीता के अठारह अध्यायों में पहले छह अध्याय कर्म - योग- प्रधान हैं, मध्य के छह अध्याय भक्ति-योग-प्रधान हैं और अन्तिम छह अध्याय ज्ञान-योगप्रधान है ।
२ गीता रहस्य ( पं० बालगंगाधर तिलक) २ भाग की शब्द सूची देखें ।
३ भागवत पुराण, स्कंध ३, अध्याय २८; स्कंध ११ अध्याय १५, १६, और २० ।
४ महानिर्वाण तन्त्र, अध्याय ३; और Tantrik Texts में प्रकाशित षट्चक्र-निरूपण पृष्ठ, ६०, ६१, ८२, ६०, ६१ और १३४ ।
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