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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......45 प्रतीकात्मक दृष्टि से क्षुर केशों को दूर करता है। मांगलिक कार्यों में श्याम वर्ण को अशुभ मानते हैं अत: इस मुद्रा प्रयोग से काले केशों का अस्तित्व एक निश्चित समय के लिए समाप्त कर दिया जाता है। अभिप्रायानुसार इस मुद्रा के माध्यम से भीतर की गन्दगी और मन का कालापन दूर होता हैं, जिससे तीसरे नेत्र की दिव्यदृष्टि उद्घाटित हो सकें। विधि
"कनिष्ठिकामंगुष्ठेन संपीड्य शेषांगुलीः प्रसारयेदिति क्षुरमुद्रा।"
अंगुष्ठ के द्वारा कनिष्ठिका अंगुली को आक्रमित कर शेष अंगुलियों को प्रसारित करने पर क्षुर मुद्रा बनती है।
क्षुर मुद्रा सुपरिणाम
• शारीरिक दृष्टि से यह मुद्रा अशुद्ध रक्त को शुद्ध करती है। चर्म सम्बन्धी रोगों में लाभ पहँचाती है। त्वचा को कोमल बनाती है। शरीर में पानी जमा करने