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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......121
43. शूल मुद्रा
संस्कृत कोश में शूल शब्द के अनेक पर्यायवाची बताये गये हैं। सामान्यतः शूल एक प्रकार का घातक हथियार है।
शूल को धर्म शत्रुओं के नाश का प्रतीक माना गया है तथा यह विघ्नबाधाएँ आदि को समाप्त करता है । प्रस्तुत मुद्रा इन्हीं अर्थों के सन्दर्भ में कही गई मालूम होती है।
सार रूप में शूल मुद्रा धर्म शत्रुओं से बचाव करने एवं विघ्नों का अपनयन करने के उद्देश्य से की जाती है।
विधि
“परस्पराभिमुखमूर्ध्वांगुलीकौ करौ कृत्वा तर्जनीमध्यमानामिका विरलीकृत्य परस्परं संयोज्य कनिष्ठांगुष्ठौ पातयेदिति प्रथम शूलमुद्रा । "
दोनों हाथों को एक-दूसरे के आमने-सामने रखते हुए अंगुलियों को ऊपर की ओर करें। फिर तर्जनी, मध्यमा और अनामिका अंगुलियों को मूल स्थान से
शूल मुद्रा - 1