Book Title: Jain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 384
________________ 320... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा 106. ज्वलन मुद्रा यह मुद्रा विधिमार्गप्रपा कथित मुद्रा नं. 39 के समान जाननी चाहिए। इसका प्रयोग शाकिनी जाति की आसुरी देवी का निवारण करने हेतु और संकटप्रद स्थितियों से छुटकारा पाने हेतु किया जाता है। इसका बीज मन्त्र ‘ध्या' है। 107. शिवशासन मुद्रा जिनशासन एवं शिवशासन की अभिव्यक्ति स्वरूप यह मुद्रा करते हैं। प्राप्त प्रति के अनुसार क्रोध के उपशमनार्थ इस मुद्रा को किया जाता है। इसका बीज मन्त्र 'ठ' है। विधि ____ "उभौ कूपरौ एकत्रमीलने उपरि कमलवत्प्रसार्य स्थीयते जिनशासनशिवशासन मुद्रा।" दोनों कूपर स्थान को एक-दूसरे से संयुक्त करें। फिर ऊर्ध्व भाग को कमल के समान प्रसारित करते हुए स्थिर करने पर जिनशासन-शिवशासन मुद्रा बनती है। 108. शूल मुद्रा शूल मुद्रा का स्वरूप विधिमार्गप्रपा मुद्रा नं. 43 के समान है। यह मुद्रा उपसर्ग निवारण, दुष्ट शक्तियों का उच्चाटन एवं कामण दोष का अपगमन करने हेतु दर्शायी जाती है। इस मुद्रा का बीज मन्त्र ‘अं' है। 109. श्रीमणि मुद्रा प्रस्तुत मुद्रा का स्वरूप पूर्ववत मुद्रा नं. 40 के समान है। श्रीमणि मुद्रा पन्द्रह अक्षर वाली विद्या पूजा के लिए की जाती है। इसका बीज मन्त्र 'आ' है। 110. शूल मुद्रा इस मुद्रा का वर्णन पूर्ववत मुद्रा नं. 43 के समान है। यह मुद्रा विकृत भावों एवं निरर्थक विकल्पों को समाप्त करने हेतु प्रदर्शित की जाती है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416