Book Title: Jain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 397
________________ मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...333 को नियंत्रित रखती है। बालकों के विकास एवं संरक्षण में विशेष सहयोग करती है। उपाध्याय मुद्रा संस्कृत व्युत्पत्ति के अनुसार 'उपेत्याधीयते अस्मात् इति उपाध्यायः' जिसके समीप अध्ययन किया जाता है उसे उपाध्याय कहते हैं। उपाध्याय हुई उप + अधि + इ +घञ् के योग से हुई है। इसमें 'उप्' उपसर्ग समीपार्थक व 'अधि' धातु अध्ययनार्थक है। जैन ग्रन्थों में उपाध्याय को अध्ययन-अध्यापन का अधिष्ठाता माना गया है। पच्चीस गुणों से युक्त उपाध्याय पठन-पाठन में ही डूबे रहते हैं। अध्ययन-अध्यापन की नियमित प्रवृत्ति से पूर्वोपार्जित ज्ञान ठोस बनता है, नयी-नयी जानकारियाँ प्राप्त होती है और आगामी काल के लिए ज्ञान मार्ग का द्वार खुला रहता है। इस मुद्रा का उपयोग सम्यकज्ञान के विकास में सहायक हैं। ॐ ह्रीं णमो उवज्झायाणं उपाध्याय मुद्रा

Loading...

Page Navigation
1 ... 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416