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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...323 12. एक-दूसरे से गुथी हुई अंगुलियों में कनिष्ठिका को अनामिका एवं मध्यमा
को तर्जनी के साथ जोड़ने से गो-स्तनाकार 'धेनु मुद्रा' होती है। 13. हस्ततल के ऊपर हस्ततल रखने से 'आसन मुद्रा' होती है। 14. दक्षिण अंगष्ठ द्वारा तर्जनी मध्य को लपेटकर पुन: मध्यमा को छोड़ने से
'नाराच मुद्रा' होती है। 15. हस्तस्थापन करने से ‘जन मुद्रा' होती है। 16. बाएँ हाथ के पीठ पर दाहिना हस्ततल रखने एवं दोनों अंगूठों को चलाने
से 'मीन मुद्रा' होती है। 17. दाहिने हाथ की तर्जनी को फैलाकर मध्यमा को थोड़ा टेढ़ा करने से
'अंकुश मुद्रा' होती है। 18. दोनों हाथों की बँधी हुई मुट्ठियों को मिलाकर अंगुष्ठद्वय को सम्मुख करने
से 'हृदय मुद्रा' होती है। 19. उसी प्रकार दोनों मुट्ठियों को मिलाकर अंगूठे के आधे भाग को सिर पर
रखने से 'शिरो मुद्रा' होती है। 20. मुट्ठी बांधकर कनिष्ठिका और अंगूठे को फैलाने से शिखा मुद्रा होती है। 21. पूर्ववत मुट्ठी बांधकर तर्जनियों को फैलाने से 'कवच मुद्रा' होती है। 22. कनिष्ठिका को अंगूठे से दबाकर शेष अंगुलियों को फैलाने से 'क्षर मुद्रा'
होती है। 23. दाहिने हाथ की मुट्ठी बांधकर तर्जनी और मध्यमा को फैलाने से ‘अस्त्र
मुद्रा' होती है। 24. फैले हुये और मुख की तरफ आये हुए दोनों हाथों से पादांगुलि के तल
से लेकर मस्तक तक स्पर्श करना 'महा मुद्रा' है। 25. दोनों हाथों से अंजलि बांधकर नाभि के मूल में अंगूठे के पर्व को लगाने
से 'आवाहिनी मुद्रा' होती है। 26. अधोमुखी होने पर यही ‘स्थापनी मुद्रा' कही जाती है। 27. बंधी हुई मुट्ठियों में ऊपर उठे हुए अंगूठों वाले दोनों हाथों से 'सन्निधानी
मुद्रा' होती है। 28. एक अंगूठा ऊपर उठाने से ‘निष्ठुरा मुद्रा' होती है। ये तीनों ही
अवगाहनादि मुद्राएँ हैं।