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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......131 आज्ञाचक्र) पर दाब होने से क्रोध-वासना आदि शान्त हो जाते हैं। विशेष
• एक्यूप्रेशर मेरेडियन थेरेपी के अनुसार इस मुद्रा के प्रयोग से जननेन्द्रिय नियन्त्रण में रहती है तथा कामवासनाएँ समाप्त होती हैं। इससे उच्च रक्तचाप पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। 47. पार्श्व मुद्रा ___ शरीर के दोनों तरफ का हिस्सा अर्थात काँख से नीचे के शरीर का भाग जहाँ पसलियाँ हैं, पार्श्व कहलाता है।
उपनिषद में दार्शनिकों ने एक गंभीर प्रश्न उठाया है कि आत्मा कहाँ रहती है? उन्होंने आत्मा को हृदय में प्रतिष्ठित माना है। हृदय हमारे शरीर के बाएं पार्श्व में स्थित है।
पार्श्व मुद्रा में आकाश तत्त्व सर्वाधिक प्रभावित होता है। इस तत्त्व का हृदय के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। अत: इस मुद्रा के द्वारा हृदयस्थ आत्मा को जागृत किया जाता है।
पार्व मुद्रा