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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......149 से बड़ों के प्रति अथवा समान स्तरीय व्यक्ति के प्रति किया जाता है।
नमस्कार श्रद्धा का प्रतीक है, क्योंकि श्रद्धेय के प्रति ही हाथ जड़ते हैं। नमस्कार अभिवादन का भी प्रतीक है, क्योंकि अतिथि आदि के घर आने पर अथवा अपनों से सहज भेंट होने पर हाथ जोड़कर ही उनका सम्मान किया जाता है। __ इस प्रकार यह मुद्रा अहं से अहँ एवं लघुता से प्रभुता पाने के उद्देश्य से की जाती है।
नमस्कार मुद्रा विधि
"संलग्नौ दक्षिणांगुष्ठाक्रान्तवामांगुष्ठौ पाणी नमस्कृति मुद्रा।"
दोनों हाथों को परस्पर जोड़कर बायें हाथ के अंगूठे से दाहिने हाथ के अंगूठे को आक्रान्त करना नमस्कार मुद्रा है। सुपरिणाम ___ • शारीरिक दृष्टि से यह मुद्रा शरीर के पंच प्राणों के प्रवाह को नियमित एवं सन्तुलित करती है।