________________
244... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
हुआ परमात्मा का एक विशिष्ट प्रचंड ऊर्जा प्रवाह है जो संगम स्थलों में जहाँ चुम्बकीय वातावरण हो वहाँ अवतरित होता है जिसकी उपासना करके हर मानव अपना ईप्सित प्राप्त कर सकता है।
हमारे शरीर में इड़ा-पिंगला नामक प्राणधारा बहती है, जो गंगा - सिन्धु है । इन दोनों के संगम स्थल को सुषुम्ना कहा जाता है वही सरस्वती है, वही कुंडलिनी शक्ति है, परात्परा वाणी है जिसमें से समग्र अक्षर मातृकाएँ प्रगट हुई हैं। प्रवाह की दृष्टि से सरस्वती का सम्बन्ध अनादि से अनन्त काल तक है। अस्तित्व की अपेक्षा इसका सम्बन्ध जन्म के समय से ही है। हम देखते हैं, बच्चा जन्म लेने के साथ ही रूदन की प्रक्रिया शुरू कर देता है । उस रूदन में ऐं ऐं ऐं की ध्वनि उच्चारित होती है जो सरस्वती के सम्बन्ध को दर्शाती है । कार मुद्रा अपने स्वरूप के अनुसार त्रिकोण आकार वाली है । यह मुद्रा सरस्वती मंत्र जाप और उसे वश करने के उद्देश्य से की जाती है।
इसका बीज मन्त्र 'आ' है।
विधि
" दक्षिणकर तर्जनी मध्ये शकटाकारं कृत्वा वामतर्जन्यां स्थापने वाममध्यमाऽनामिका कनिष्ठिकां नाद बिन्दुकलाकाराः क्रियन्ते । "
दायें हाथ की तर्जनी के मध्य भाग में बायीं तर्जनी को शकट आकार में बनाकर स्थापित करें तथा बायें हाथ की मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका को नाद, बिन्दु एवं कला आकार में करने पर ऐंकार मुद्रा बनती है। 7. शंख मुद्रा
शंख एक प्रकार का जलीय जंतु है। लोग इस जीव सत्ता को नष्ट कर उसका कलेवर बजाने के उपयोग में लाते हैं। यह बहुत पवित्र समझा जाता है और देवता आदि के सामने तथा लड़ाई के समय मुँह से फूँककर बजाया जाता है। भिन्न-भिन्न आकार की अपेक्षा शंख अनेक प्रकार के होते हैं, किन्तु मूलतः उसकी द्विविध जातियाँ प्रचलित है— एक दक्षिणावर्त्त और दूसरा वामावर्त्त । दक्षिणावर्त्त शंख दुर्लभ प्राप्य हैं और कहते हैं जिसके घर यह शंख रहता है उसके धन की वृद्धि होती है । वामावर्त्त शंख सुलभता से मिलता है और औषध के काम आता है।