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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ
11. पंच परमेष्ठी मुद्रा ( प्रथम )
यह मुद्रा अपने नाम के अनुरूप परमेष्ठी पद की सूचक है। इस मुद्रा के द्वारा सर्वोत्तम रूप से आराध्य अरिहन्त आदि पाँच पदों की आकृति बनाई जाती है। इससे यह पंच परमेष्ठी मुद्रा कहलाती है।
इस मुद्रा को मोक्ष साधना के उद्देश्य से करते हैं। इसका बीज मन्त्र 'ऋ' है।
विधि
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"कर द्वयांगुष्ठाभ्यां मध्यमाद्वयं संपीड्य अनामिकाद्वयं संपीड्य च तदुपरि तर्जनीद्वयं भोजयित्वा प्रकारांतरेण पञ्चपरमेष्ठी मुद्रा । "
दोनों हाथों के अंगूठों से दोनों मध्यमाओं को संपीडित कर और दोनों अनामिकाओं को संपीडित कर उसके ऊपर दोनों तर्जनियों को योजित करने पर प्रकारान्तर से पंचपरमेष्ठी मुद्रा बनती है।
पंच परमेष्ठी मुद्रा-1
12. पंच परमेष्ठी मुद्रा (द्वितीय)
यह मुद्रा भी प्रकारान्तर से परमेष्ठी के पाँच पदों का बोध कराती है। मुझे परमेष्ठी मुद्रा से सम्बन्धित चार प्रकार प्राप्त हुए हैं उनमें यह चौथा प्रकार है ।