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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ
विधि
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“हस्तद्वयस्य मध्यमाद्वयं किंचित् फणावत्कृत्वा तर्ज्जनीद्वयहस्ताकारं कृत्वा अनामिका द्वयस्य चरणाकारौ कृत्वा प्रतिमा मुद्रा । "
दोनों हाथों की दोनों मध्यमाओं को किंचित सर्पफण के समान करके दोनों तर्जनियों को हस्त आकार में करने तथा दोनों अनामिकों को चरण आकार में करने पर प्रतिमा मुद्रा बनती है।
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54. स्थापनी मुद्रा
विधिमार्गप्रपा में उल्लिखित मुद्रा नं. 12 के समान यह मुद्रा जाननी
चाहिए।
यह मुद्रा किसी भी तरह की स्थापना के अवसर पर और श्राद्ध आदि के स्थिरीकरण के निमित्त प्रयुक्त होती है।
इसका बीज मन्त्र 'अ' है।
55. आवाहनी मुद्रा
इस मुद्रा का स्वरूप विधिमार्गप्रपा वर्णित मुद्रा नं. 11 के समान है। यह मुद्रा व्याख्यान के अवसर पर श्रोताओं को आकर्षित करने और दश दिक्पालों को आमन्त्रित करने के उद्देश्य से की जाती है।
इस मुद्रा का बीज मन्त्र 'श्क' है।
संनिधापनी
56.
मुद्रा
इस मुद्रा का स्वरूप विधिमार्गप्रपा में कथित मुद्रा नं. 13 के समान है। यह मुद्रा किसी भी मन्त्रादि जाप के प्रारम्भ में और क्षुद्रोपद्रव का विनाश करने के निमित्त की जाती है।
इसका बीज मन्त्र 'ठ' है।
57. निष्ठुरा मुद्रा
इस मुद्रा का वर्णन विधिमार्गप्रपा में निरूपित मुद्रा नं. 14 के समान है। यह मुद्रा चित्त को एकाग्र करने और कदाचित कोप करने के अवसर पर
की जाती है।
इसका बीज मन्त्र 'अ' है।