Book Title: Jain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 381
________________ मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...317 कांतिवान बनाती है। दिव्य ज्ञान को जागृत कर विचारों के संप्रेषण में सहायक बनती है। • शारीरिक स्तर पर यह मुद्रा खून की कमी, खसरा, बिस्तर गीला होना, मासिक धर्म की अनियमितता, कामुकता, ब्रेन ट्यूमर, अनिद्रा आदि रोगों के निवारण में सहायक बनती है। • जल एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा मन को शांत एवं शीतल बनाती है तथा आन्तरिक सहजानंद की प्राप्ति करवाती है। • पीयूष एवं प्रजनन ग्रंथि के स्राव को सक्रिय करते हुए यह मुद्रा कामेच्छाओं को नियंत्रित रखती है। 98. गदा मुद्रा इस मुद्रा का वर्णन विधिमार्गप्रपा मुद्रा नं. 31 के समान है। सामान्य तौर पर दुष्ट शक्तियों अथवा बाधक तत्त्वों का निवारण करने हेतु उक्त मुद्रा का प्रयोग होता है। इसका मन्त्र बीज 'र' है। 99. घण्टा मुद्रा इस मुद्रा का स्वरूप विधिमार्गप्रपा उपदिष्ट मुद्रा नं. 32 के समान है। यह मुद्रा जिन प्रतिमा की पूजा आदि करते समय, प्रतिष्ठा सम्बन्धी मुहूर्त निकलने पर, किसी को सावधान करते वक्त, व्याख्यान के प्रारम्भ में सभासदों को सावचेत करने हेतु प्रदर्शित की जाती है। इसका बीज मन्त्र ‘ल' है। 100. नाद मुद्रा यह मुद्रा विधिमार्गप्रपा वर्णित मुद्रा नं. 75 के समान है। इस मुद्रा का प्रयोग किसी गाँव या शहर में प्रवेश करने के अवसर पर और वाजिंत्र-वादन के प्रसंग पर किया जाता है। इसका बीज मन्त्र ‘व' है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416