________________
मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ 315
यहाँ श्रीवत्स से तात्पर्य सामान्य चिह्न से है।
मुद्राविधि के अनुसार इस मुद्रा का उपयोग शकुन देखने के लिए किया जाता है।
इसके अतिरिक्त बिंब हृदय पर न्यास क्रिया करते समय, शीतलनाथ बिम्ब की प्रतिष्ठा के समय और मांगलिक लेख के अवसर पर भी श्रीवत्स मुद्रा करते हैं।
इसका बीज मन्त्र 'म' है।
विधि
“उभयकर तर्जन्यौ अंगुष्ठेन सह संमील्य मध्यमाद्वयं प्रसार्य अनामिकाद्वयं अङ्गुष्ठाऽधः संयोज्यते श्रीवत्स मुद्रा । '
""
दोनों हाथों की तर्जनियों को अंगूठे के साथ सम्मिलित करें, दोनों मध्यमाओं को प्रसारित करें तथा दोनों अनामिकाओं को अंगूठों के नीचे संयोजित करने पर श्रीवत्स मुद्रा बनती है।
सुपरिणाम
श्रीवत्स मुद्रा को धारण करने से मणिपुर, अनाहत एवं विशुद्धि चक्र सक्रिय होते हैं। यह मुद्रा आत्मबल, मनोबल एवं संकल्प बल को बढ़ाती है। इससे मनोविकार घटते हैं, परमार्थ रुचि बढ़ती है तथा अतीन्द्रिय क्षमताएँ जागृत होती हैं।
• शारीरिक दृष्टिकोण से गला, मुँह, कान, नाक की समस्या, पाचन समस्या, दमा, एलर्जी, फेफड़े, छाती आदि विकारों का उपशमन करती है।
• अग्नि एवं वायु तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा शरीरस्थ तीनों अग्नियों का जागरण कर स्फूर्ति लाती है तथा कलात्मक एवं सृजनात्मक कार्यों में रुचि का वर्धन करती है।