Book Title: Jain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 367
________________ मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...303 अपर अंकुश मुद्रा सुपरिणाम • अपर अंकुश मुद्रा को धारण करने से मूलाधार एवं विशुद्धि चक्र जागृत होते हैं। इनके जागरण से शरीर की तेज, कान्ति एवं ओज में वृद्धि होती है, आत्मानंद की प्राप्ति होती है और अतीन्द्रिय ज्ञान की क्षमता बढ़ती है। • शारीरिक स्तर पर यह मुद्रा हड्डी की समस्या, गला, मुंह, नाक, कान आदि की समस्या, शारीरिक कमजोरी आदि के निवारण में सहायक बनती है। __• पृथ्वी एवं वायु तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा विचारों एवं भावों को स्थिर, एकाग्र एवं दृढ़ बनाती है। सत्य स्वीकार का सामर्थ्य प्रदान करती है। • प्रजनन, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा जननेन्द्रिय सम्बन्धी रोगों का निवारण करती है। स्वर सुधारने, शरीर के तापक्रम को संतुलित रखने, आवाज, स्वभाव एवं व्यवहार नियंत्रण में सहायक बनती है। शरीर के मोटापे एवं वजन को नियंत्रण में रखती है।

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