Book Title: Jain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 366
________________ 302... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा साधक को दिव्य ज्ञानी बनाने एवं परभावों को समझने में सहायक बनती है। दैहिक स्तर पर यह मुद्रा रक्त विकार, हृदय विकार एवं मानसिक विकार को उपशांत करती है। यह अल्सर, पाचन समस्या, ब्रेन ट्यूमर आदि को भी दूर करती है। • अग्नि एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा शरीरस्थ ऊर्जा का ऊर्ध्वारोहण करती है और हृदय में आंतरिक आनंद की अनुभूति करवाती है। • पीयूष, एड्रीनल एवं पैन्क्रियाज ग्रंथि के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा व्यवहार आदि को नियन्त्रित रखती है। 67. अंकुश मुद्रा इस मुद्रा का स्वरूप विधिमार्गप्रपा में कथित मुद्रा नं. 22 के समान है। यह मुद्रा किसी व्यक्ति या देवी - देवता को वश में करने हेतु की जाती है तथा इसे प्रतिष्ठा विसर्जन के अवसर पर भी करते हैं। इसका बीज मन्त्र 'ए' है। 68. अपर अंकुश मुद्रा अंकुश मुद्रा के तीन प्रकारान्तर हैं। दूसरा प्रकार अपर अंकुश मुद्रा के नाम से प्रख्यात है। यह मुद्रा सामान्य मनुष्य जाति पर नियन्त्रण रखने और चार पैर वाले तिर्यंच जाति के पशुओं पर निग्रह करने के भाव से प्रयुक्त होती है। इसका बीज मन्त्र 'ऐ' है। विधि " सौभाग्य मुद्रां कृत्वा द्वे अपि मध्यमे आत्मसंमुखे क्रियेते इति अपर अंकुश मुद्रा । " दोनों हाथों को सौभाग्य मुद्रा के समान करते हुए दोनों मध्यमाओं को आत्म सम्मुख करने पर अपर अंकुश मुद्रा बनती है।

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