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250... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
योनि मुद्रा सुपरिणाम
• योनि मुद्रा को धारण करने से स्वाधिष्ठान एवं विशुद्धि चक्र सक्रिय होते है। जिससे तनाव एवं प्रतिकूलताओं में जूझने की क्षमता जागृत होती है। इससे प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास, काम-वासना आदि दुर्गुण मिटते हैं तथा साधक आत्माभिमुख बनता है।
• शारीरिक दृष्टि से यह मुद्रा खून की कमी, सूखी त्वचा, बिस्तर गीला करना, दाद-खाज, गुर्दे आदि की समस्या, गला, मुँह, नाक, कान आदि के रोगोशमन में सहायक बनती है।
• जल एवं वायु तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा कामेच्छा के नियंत्रण में सहायक बनती है। इसी के साथ भाव अभिव्यक्ति में एवं उत्सर्जनविसर्जन के कार्यों में भी सहायक बनती है। __• पीयूष एवं पीनियल ग्रंथि के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा नेतृत्व निर्णय एवं नियंत्रण शक्ति का विकास करती है। इससे बालों से सम्बन्धित समस्या एवं शारीरिक कमजोरी आदि दूर होती है।