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आचारदिनकर में उल्लिखित मुद्रा विधियों का रहस्यपूर्ण विश्लेषण ...193
दोनों हाथों के पृष्ठभाग को मिलाते हुए अंगुलियों का वेणीबंध करें। फिर दोनों हाथों को स्वयं की तरफ सीधा करने पर मुद्गर मुद्रा निष्पन्न होती है।
मुगर मुद्रा सुपरिणाम
• शारीरिक दृष्टि से यह मुद्रा दैहिक ऊर्जा को संवर्द्धित करती है। शरीर को निरोग और हृष्ट-पुष्ट बनाती है।
इससे अग्नि एवं वायु तत्त्व विशेष प्रभावित होते हैं। यह मुद्रा रक्त संचरण एवं पाचन क्रिया को सुचारु रूप से कार्यान्वित करती है। शरीरस्थ तीनों अग्नियों को जागृत कर ऊर्ध्वगमन में सहायक बनती है।
शारीरिक समस्याएँ जैसे कि श्वास-शरीर आदि में दुर्गन्ध, मधुमेह, पाचन समस्या, बुखार, पित्ताशय कैन्सर, अल्सर, सुस्ती आदि कई रोगों का निवारण इस मुद्रा के प्रयोग से हो सकता है।
• आध्यात्मिक दृष्टि से इस मुद्राभ्यास द्वारा मणिपुर एवं अनाहत चक्र जागृत होते हैं। इन चक्रों के प्रभाव से संकल्पबल, पराक्रम एवं कोमल संवेदनाएँ जागृत होती हैं।