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आचारदिनकर में उल्लिखित मुद्रा विधियों का रहस्यपूर्ण विश्लेषण ...207
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सुपरिणाम
प्रियंकटी मुद्रा • शारीरिक स्तर पर हाथ एवं अंगलियाँ सशक्त बनती हैं तथा खून की कमी, सूखी त्वचा, बिस्तर गीला होना, हर्निया, दाद-खाज, मासिक धर्म, योनि विकार, रक्त कैन्सर, मस्तिष्क की समस्या आदि का निवारण होता है।
यह मुद्रा जल और आकाश तत्त्व से संभावित रोगों में आराम पहँचाती है तथा प्रजनन, श्वसन एवं मस्तिष्क सम्बन्धी समस्याओं का निवारण करती है।
प्रजनन, पिनीयल एवं पीयूष ग्रन्थियों के स्राव को संतुलित करते हुए यह शरीर तापमान और हड्डियों की समस्या का शमन करती है। मानसिक प्रतिभा का जागरण करते हुए जीवन पद्धति, मनोवृत्ति एवं स्वभाव को नियंत्रित रखती है।
इससे प्राणशक्ति सम्बन्धी अवरोधों को दूर करने की क्षमता जागृत होती है। • आध्यात्मिक स्तर पर अतीन्द्रिय चेतना का विकास होता है।
इस मुद्रा को धारण करने से स्वाधिष्ठान एवं ब्रह्मकेन्द्र सक्रिय होते हैं। यह मुद्रा विशेष रूप से यौन उत्तेजना को नियंत्रित करने एवं प्रतिकूलताओं से जाने की शक्ति प्रदान करती है। यह आवरित आन्तरिक ज्ञान को उद्घाटित कर एकाग्रता, स्थिरता एवं ज्ञान वृद्धि में भी सहयोग करती है।