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आचारदिनकर में उल्लिखित मुद्रा विधियों का रहस्यपूर्ण विश्लेषण ...229
मोक्ष कल्पलता मुद्रा - 1
अंगूठों को अंगुलियों के समूह से अलग करके नाभि से अंगुलियों को चालित करते हुए द्वादश तक ले जाने पर जो मुद्रा निष्पन्न होती है, उसे मोक्ष कल्पलता मुद्रा कहते हैं।
सुपरिणाम
• शारीरिक दृष्टि से यह मुद्रा नाड़ी तन्त्र की शुद्धि करती है। इससे रक्त वाहिनियों का परिशोधन होता है।
अग्नि एवं जल तत्व को संतुलित एवं नियंत्रित करते हुए यह मुद्रा शरीरस्थ तीनों अग्नियों को जागृत करती है। भावों में प्रवाहात्मकता लाती है । यह पाचन तंत्र, चयापचय, लीवर, पित्ताशय, मधुमेह आदि की समस्या, अल्सर, बुखार, हर्निया, दाद, नुपंसकता, कामुकता मासिकधर्म, गुर्दे आदि की समस्याओं का निवारण करती है।
• आध्यात्मिक दृष्टि से इस मुद्रा की साधना के द्वारा मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र सक्रिय हो जाते हैं। यह ऊर्जा एवं ज्ञान दोनों का ऊर्ध्वगमन