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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...235
ॐकार मुद्रा ॐकार किसी भाषा का शब्द नहीं प्रत्यत शक्तिशाली ध्वनि है। यह एकाक्षरी मन्त्र परमात्मा का वाचक है। परमात्मा का साकार प्रतीक होने से परम उपासना का श्रेष्ठ साधन है।
जैन धर्म में 'ॐ' को पंच परमेष्ठि का प्रतीक माना गया है। मुद्राविधि पुस्तक के उल्लेखानुसार सभी जगह स्मरण के अवसर पर और श्रेष्ठ चरित्रवान मुनियों के ध्यान के विषय में इस मुद्रा का उपयोग होता है। इसका बीज प्रणव है। विधि ___ "दक्षिणहस्तस्य मुष्टिबंधने दक्षिणांगुष्ठानस्य चोटिवत्कर्षणे ॐकार मुद्रा।" ___ दायें हाथ की मुट्ठी बांधकर एवं दायें अंगूठे के अग्रभाग को चोटीवत खींचने पर ॐकार मुद्रा बनती है।