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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...239
नकार मुद्रा
विधि
"वामांगुष्ठं कुण्डलाकारं कृत्वा वामतर्जनी मूले संस्थाप्य वामतर्जनी मध्यमा दक्षिण तर्जन्यां स्थापने नकारमुद्रा"
के
बायें हाथ के अंगूठे को कुण्डल आकार के समान करके उसे बायीं तर्जनी मूल में संस्थापित करें। फिर बायीं तर्जनी और मध्यमा के अग्रभाग पर दायीं तर्जनी को स्थापित करने से नकार मुद्रा बनती है।
सुपरिणाम
• मुद्रा विचार में वर्णित नकार मुद्रा की साधना करने से मूलाधार, मणिपुर एवं ब्रह्म केन्द्र पर प्रभाव पड़ता है। यह मुद्रा सकारात्मक ऊर्जा का उत्पादन कर आत्मविश्वास एवं मनोबल में वृद्धि करती है। आन्तरिक आनंद की प्राप्ति करवाती है। इससे मनोविकार घटते हैं एवं परमार्थ में रुचि बढ़ती है।
• शारीरिक स्तर पर यह मुद्रा कैन्सर, हड्डी की समस्या, कोष्ठबद्धता, पाचन तंत्र, मांसपेशी, जोड़ों के दर्द एवं मस्तिष्क सम्बन्धी विकारों को दूर करने में सहायक बनती है।