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222... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
अग्नि एवं पृथ्वी तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा आन्तरिक अग्नि को प्रदीप्त कर भावों एवं विचारों को स्थिर करती है। इसी के साथ विसर्जन एवं पाचन तंत्र से सम्बन्धित कार्यों को नियमित एवं नियंत्रित रखती है।
• आध्यात्मिक दृष्टि से चैतन्य केन्द्रों पर लाभकारी प्रभाव पड़ता है। इससे तैजस और शक्ति केन्द्र अधिक क्रियाशील होते हैं।
इस मुद्रा की मदद से मस्तिष्क केन्द्रीय नाड़ी संस्थान सुचारू रूप से संचालित होते हैं।
शाल्मली मुद्रा को धारण करने से मणिपुर एवं मूलाधार चक्रों का जागरण होता है। यह मुद्रा ऊर्जा का उत्पादन कर उसे ऊर्ध्वरोहित करने में सहायक बनती है। यह संकल्प शक्ति, पराक्रम एवं परमार्थ में रुचि को जागृत करते हुए एकाग्रता, विश्वास, स्फूर्ति, आत्मविश्वास आदि में वृद्धि करती है।
एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रंथियों के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा शारीरिक संचरण रक्त संचरण, अनावश्यक पदार्थों के निष्कासन में सहायक बनती है। साधक को साहसी, निर्भयी, सहनशील एवं आशावादी भी बनाती है तथा कामेच्छाओं पर नियंत्रण करती है।
18. कन्दुक मुद्रा
क्रीड़ा योग्य गेंद को कन्दुक कहते हैं । कन्दुक की एक खासियत है कि उसे कितना ही ऊपर उछाला जाये, वह तुरन्त नीचे की ओर गमन करती है। इसी प्रकार किसी के आक्रोश को शान्त करने के लिए हाथ की मुद्रा भी वैसी ही होती है अर्थात हाथ को गेंद की तरह ऊपर-नीचे करते हैं।
आचार्य वर्धमानसूरि के अनुसार यह मुद्रा द्वेष का शमन करती है। इस मुद्रा का प्रयोजन कन्दुक मुद्रा के गुण से पूर्ण मेल खाता है ।
विधि
"दक्षिणकरे अधोमुखे प्रसारिताङ्गुलौ निरालम्बे स्थापिते कन्दुक
मुद्रा । "
दाएँ हाथ को अधोमुख करके और अंगुलियों को बिना किसी आधार के स्थापित करने पर जो मुद्रा निष्पन्न होती है, उसे कन्दुक मुद्रा कहते हैं।