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आचारदिनकर में उल्लिखित मुद्रा विधियों का रहस्यपूर्ण विश्लेषण
विधि
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छत्र मुद्रा
"मुकुलीकृत पञ्चाङ्गुलौ वामहस्ते प्रसारित दक्षिण करस्थापनं
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छत्रमुद्रा ।
बाएँ हाथ की पाँचों अंगुलियों को कली का आकार देकर उसे फैले हुए दाएँ हाथ पर रखने से जो मुद्रा निष्पन्न होती है, उसे छत्र मुद्रा कहते हैं। सुपरिणाम
शारीरिक दृष्टि से यह मुद्रा पंच प्राणों के प्रवाह को नियमित करती है। भौतिक स्तर पर यह मुद्रा कैन्सर, हड्डी की समस्या, कोष्ठबद्धता, सिरदर्द, जोड़ों की समस्या, घुटनों की समस्या, शारीरिक कमजोरी, समस्या, उदर, मांसपेशी की समस्या आदि का निवारण करती है।
पाचन
यह मुद्रा पृथ्वी एवं अग्नि तत्त्व को संतुलित करते हुए पाचन एवं विसर्जन तंत्र से सम्बन्धित समस्याओं का निवारण करती है। शरीरस्थ तीनों अग्नियों का जागरण कर ऊर्ध्वगमन में सहायक बनती है। जिससे भावों एवं विचारों में स्थिरता आती है।