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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......189 नीचे टपकता रहता है। यह अमृत जीवनदायिनी शक्ति है, जीवन का वास्तविक रस है।
सभी चक्रों में आज्ञा चक्र अति सूक्ष्म है और उससे भी अधिक सूक्ष्म बिन्दु है। चक्र मानव की सूक्ष्म संरचना से संबंधित माने जाते हैं लेकिन बिन्दु वह केन्द्र है जहाँ से मानव संरचना का उदय होता है, अत: बिन्दु स्वयं में पूर्ण तथा सभी चक्रों का उद्गम स्थान है। चक्र मन के क्षेत्र में है तथा मन के बन्धनों में बंधा है लेकिन बिन्दु मन से परे है।
बिन्दु का विषय सांकेतिक, गूढ़ और कल्पनातीत है। अन्य रहस्यमय
बिन्दु मुद्रा प्रणालियों के समान यह भी अत्यधिक रहस्यपूर्ण है। यौगिक साधनाओं का मूल उद्देश्य बिन्दु के प्रति सजगता उत्पन्न करना है। वास्तव में यह पूर्णत: अवर्णनीय एवं तर्क से परे है। यह सीमित को असीमित से जोड़ता है। इसे चक्रों के सदृश पुस्तकीय ज्ञान अथवा कल्पना से नहीं समझा जा सकता।