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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......147
गरुड़ मुद्रा विधि
"आत्मनोऽभिमुखदक्षिणहस्तकनिष्ठिकया वामकनिष्ठिकां संगृह्याधः परावर्तित हस्ताभ्यां गरुड़ मुद्रा।"
दोनों हाथों को स्वयं की ओर अभिमुख करते हुए दाएं हाथ की कनिष्ठिका अंगुली से बाएं हाथ की कनिष्ठिका अंगुली को अच्छी तरह पकड़ लें। फिर हाथों को नीचे की ओर परावर्तित करने पर गरुड़ मुद्रा बनती है। सुपरिणाम
• शारीरिक दृष्टि से इस मुद्रा के अभ्यास से साधक का शरीर रूई की भाँति हल्का हो जाता है।
प्राणशक्ति सम्बन्धी अवरोधों को दूर करने की क्षमता जागृत होती है। जोड़ों में लचीलापन लाने के लिए एवं श्वास सम्बन्धी रोगों से मुक्ति पाने के लिए यह मुद्रा अत्यन्त लाभदायी है। इससे कण्ठ सम्बन्धित तकलीफें भी दूर होती हैं।