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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप... ...183
ब्रह्माण्ड में भेजा जाता है तथा उन तरंगों से साधक आत्माएँ स्वयं को तद्रूप बनाने (भगवत्ता को प्राप्त करने) में सफल हो जाती है।
यह मुद्रा उदर सम्बन्धी रोगों में भी अत्यन्त लाभदायक है। पर्वत मुद्रा
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ऊँचे-ऊँचे पहाड़ पर्वत कहलाते हैं। पर्वत उच्चता, स्थिरता एवं संकल्प दृढ़ता का प्रतीक है। पर्वत मुद्रा के द्वारा जिनेश्वर प्रतिमा के महत्त्व को दर्शाया जाता है। जिस तरह भयंकर तूफान में भी पर्वत अचल रहता है, उसी तरह वीतराग पुरुष अनुकूल-प्रतिकूल अवस्थाओं में दृढ़ लक्षी बने रहते हैं। उनका जीवन पर्वत की भाँति उत्तुंग एवं विकास की अन्तिम अवस्था को स्पर्श किया होता है।
पर्वत मुद्रा के माध्यम से वीतराग परमात्मा के अनभिव्यक्त जीवन को अनुभूति के स्तर पर प्रत्यक्षीभूत करने का प्रयास किया जाता है।
पर्वत मुद्रा