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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......177
आसन मुद्रा
सुपरिणाम
• शारीरिक स्तर पर इस मुद्रा से जठराग्नि प्रदीप्त होती है और उदर सम्बन्धी विकारों का शमन होता है। __यह मुद्रा वायु एवं आकाश तत्त्व को नियन्त्रित करती है। परिणामत: वायु एवं हृदय सम्बन्धी रोगों का निवारण होता है।
• आध्यात्मिक स्तर पर साधक ऊर्ध्वगामी बनता है।
इससे इच्छाशक्ति का विकास होता है। साधक जितेन्द्रिय होकर अनाहत ध्वनि को अनुभूत करता है।
कुंडलिनी शक्ति ऊर्ध्वगामी होकर सहस्रार चक्र का भेदन करती है।