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178... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
अंग
मुद्रा
यहाँ अंग शब्द का अभिप्राय लगभग शारीरिक अंगों से है । प्रश्न होता है कि प्रतिष्ठा प्रसंग पर अंग मुद्रा करने का प्रयोजन क्या हो सकता है ?
सिद्ध परमात्मा तो अष्ट कर्मों से मुक्त अशरीरी होते हैं, अतः इस मुद्रा का सम्बन्ध सिद्ध जीवों से तो हो नहीं सकता। तब कहा जा सकता है कि अरिहंत परमात्मा केवलज्ञान अवस्था में सशरीरी एवं सांगोपांग दोनों से युक्त होते हैं। जिनालय में मूलनायक भगवान के रूप में अरिहंत परमात्मा की प्रतिमा ही स्थापित की जाती है। प्राण प्रतिष्ठा के समय अंग मुद्रा दिखाकर प्रतिमा पर अंगों का आरोपण किया जाता है, ऐसा संभाव्य है। अंग मुद्रा की परिभाषानुसार प्रतिमा का लेपन करते वक्त जो हस्तमुद्रा बनती है वह अंग मुद्रा है। तदनुसार प्रतिमा लेपन के निमित्त भी यह मुद्रा करते हैं।
अभिप्रायतः तीर्थंकर परमात्मा की केवलज्ञान अवस्था को उद्भासित एवं प्रतिमा में सजीवत्व का आरोपण करने के उद्देश्य से अंग मुद्रा की जाती है।
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अंग मुद्रा