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138... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
जिन मुद्रा जिन मुद्रा में शरीर की आकृति जिन अवस्था की भाँति बनती है, इसलिए इसे जिन मुद्रा कहा गया है।
जिन मुद्रा का मूल उद्देश्य जिनेश्वर पद की प्राप्ति है।
विधि
"चतुरंगलमग्रतः पादयोरन्तरं किंचिन्यूनं च पृष्ठतः कृत्वा समपादः कायोत्सर्गेण जिन मुद्रा।"
दोनों पाँवों के मध्य अग्रभाग में चार अंगुल और पृष्ठ भाग में चार अंगुल से कुछ कम अन्तर रखकर समान पैरों द्वारा कायोत्सर्ग करने से जिन मुद्रा बनती है। सुपरिणाम
• भौतिक दृष्टि से यह मुद्रा शरीर की समस्त ऊर्जा को एकत्रित करती है। इसका अभ्यास सम्पूर्ण शरीर में रक्त संचालन की क्रिया को नियमित करता है। शरीर के वायु, अग्नि, पृथ्वी तत्त्व संतुलित एवं स्वस्थ बनते हैं। इस मुद्रा का