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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप... ...139
स्वास्थ्य पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है।
• थायराइड, पेराथायराइड, एड्रिनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थियों के स्राव को संतुलित कर यह मुद्रा त्वचा, बाल, मासिक धर्म, नाड़ीगति, कमजोरी रक्तचाप, जननेन्द्रिय से सम्बन्धित समस्याओं का निवारण करने में सहायक है।
• आध्यात्मिक स्तर पर इस मुद्रा से आत्मरमणता की स्थिति प्रकट होती है। विशेष रूप से पाचन एवं विसर्जन तंत्र के कार्यों को यह व्यवस्थित करने में सहयोगी बनती है। यह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते हुए आत्मविश्वास, परोपकार आदि के भाव जागृत करती है।
इस मुद्रा से साधक का मानसिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक एवं भावनात्मक सन्तुलन बना रहता है। इससे सूक्ष्म शरीर का अनुभव होता है। विकार एवं वासनाजन्य प्रवृत्तियों का शमन होता है।
यह मुद्रा विशुद्धि, मणिपुर एवं मूलाधार चक्र को जागृत करते हुए स्वनियंत्रण, एकाग्रता, अनुशासन आदि में वृद्धि तथा क्रोधादि कषायों को कम करती है। 51. सौभाग्य मुद्रा
सौभाग्य यानी अच्छा भाग्य, अच्छी किस्मत। सौभाग्य शब्द अखंडता, शुभता, मंगल, यश, समृद्धि, प्रतिष्ठा का सूचक है। जैन आम्नाय में अक्षत, वासचूर्ण, नवीन दीक्षार्थी के उपकरण आदि इसी मुद्रा से अभिमन्त्रित करते हैं। इस मुद्रा के द्वारा अक्षत आदि में श्रेष्ठ भावों का आरोपण किया जाता है जिसका सुप्रभाव व्रतग्राही, पदग्राही, नूतन प्रतिमा आदि पर नि:सन्देह पड़ता है। बाह्य दृष्टि से यह मुद्रा अखण्ड समृद्धि प्रदान करती है जिसे सामान्यत: कोई नष्ट नहीं कर सकता। आभ्यन्तर दृष्टि से शाश्वत सुख उपलब्ध करवाती है जिसे कोई भी शक्ति खण्डित नहीं कर सकती। __इस तरह सौभाग्य मुद्रा के माध्यम से भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों प्रकार के उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है। विधि
___ "परस्पराभिमुखौ ग्रथितांगुलीको करौ कृत्वा तर्जनीभ्यामनामिके गृहीत्वा मध्यमे प्रसार्य तन्मध्येऽङ्गुष्ठद्वयं निक्षेपेदिति सौभाग्य मुद्रा।"