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136... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा प्राकृतिक उपद्रवों से अथवा चोर-लूटेरें आदि से अपना बचाव करने हेतु घर का दरवाजा बन्द करके रखते हैं। यह मुद्रा दिखाकर दुष्ट देवों के मार्ग को अवरुद्ध कर एवं दुष्ट तत्त्वों के आने की संभावना को खत्म कर दिया जाता है। ____ लौकिक स्तर पर अमूल्य वस्तुएँ कपाट के अन्दर रखी जाती हैं। उसी तरह इस मुद्रा के द्वारा दिव्य शक्ति सम्पन्न सम्यक्त्वी देवों को सुव्यवस्थित स्थान पर बिठाकर, अन्य देवों के लिए उस स्थान का वर्जन कर देते हैं।
कपाट मुद्रा दिखाकर ये भाव भी संप्रेषित किये जाते हैं कि जिन देवों को अंजलि मुद्रा के द्वारा आमन्त्रित किया, उन्हीं के लिए जिनालय में आरक्षित स्थान है। शेष अनिष्ट शक्तियाँ इस दरवाजे के भीतर नहीं आ सकतीं। कपाट मुद्रा के द्वारा आमन्त्रित इष्ट देवों को सुरक्षित रखने का प्रयत्न भी किया जाता है।
सामान्यत: बन्द गृह में बैठा हुआ व्यक्ति बाहरी हलचलों से प्रभावित नहीं होता, वैसे ही यह मुद्रा प्रतीक रूप में मन की चंचल वृत्तियों को समाप्त करती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि कपाट मुद्रा प्रतिकूल शक्तियों के निरोध की सूचक है। इस मुद्रा के द्वारा बाह्यतः कायिक अशुभ तत्त्वों का एवं आभ्यन्तरत: मानसिक अशुभ वृत्तियों का निवारण किया जाता है। विधि _ "अभयाकारौ समश्रेणिस्थितांगुलीको करौ विधायाङ्गुष्ठयोः परस्पर प्रथनेन कपाट मुद्रा।" ____ दोनों हाथों की अंगुलियों को समान श्रेणि में स्थिर रखते हुए उन्हें अभय मुद्रा के आकार में करें। फिर दोनों अंगूठों को परस्पर ग्रथित करने पर कपाट मुद्रा बनती है। सुपरिणाम
• शारीरिक स्तर पर यह मुद्रा पंच प्राणों के प्रवाह को नियमित करती है। ___ इस मुद्रा के दरम्यान अग्नि तत्त्व एवं जल तत्त्व अधिक प्रभावित होते है, जिसके परिणामस्वरूप हर्निया, खून की कमी, दाद, खाज, नपुंसकता,
अंडाशय, गर्भाशय, पित्ताशय आदि की समस्या, कामुकता, रक्त कैन्सर, मधुमेह, बुखार आदि में राहत मिलती है और अनिद्रा की बीमारी दूर होती है।
शरीर की पिच्युटरी और पिनियल ग्रन्थों के स्राव नियंत्रण में रहते हैं। यह मुद्रा पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, नाड़ीतंत्र, आंतों, मल-मूत्र अंग, प्रजनन