________________
126... . जैन मुद्रा
योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
संहार मुद्रा-2
● भौतिक स्तर पर यह मुद्रा पाचन तंत्र, चयापचय, लीवर, पित्ताशय, तिल्ली और पाचक ग्रंथि का संचालन करती है। इसी के साथ मधुमेह, बवासीर, शारीरिक कमजोरी, अल्सर, प्रजनन तंत्र सम्बन्धी समस्याओं का निवारण करती है। इससे वायु विकार शमित होते हैं। कर्ण एवं उदर सम्बन्धी रोगों में आराम मिलता है। पाचन तंत्र के सहायक अवयव जैसे आमाशय, पक्वाशय आदि पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
यह पाचन तंत्र एवं विसर्जन तंत्र की समस्याओं के निवारण में विशेष उपयोगी है। यह नाड़ीतंत्र, आँतें, यकृत, तिल्ली, मेरूदण्ड, गुर्दे के कार्यों का भी नियमन करती है।
इस मुद्राभ्यास से थायराइड ग्रन्थि एवं एड्रीनल ग्रंथि सक्रिय होकर जीवन की क्षमता और तीव्रता को बढ़ाती है तथा शारीरिक शिथिलता को दूर करती है।