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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......119 सुपरिणाम
• शारीरिक दृष्टि से यह मुद्रा आँख, कान और उदर सम्बन्धी विकारों को ठीक करती है। इससे पृथ्वी, और जल तत्त्व पर्याप्त रूप से प्रभावित होते हैं, जिसके फलस्वरूप पृथ्वी या जल की कमी अथवा अधिकता से होने वाली
आपदाओं से आराम मिलता है। ___गुर्दो पर अच्छा प्रभाव पड़ता है अर्थात रक्त की सफाई होती है तथा रक्त में सोडियम, पोटैशियम, लवण एवं जल आदि तत्त्वों की मात्रा का नियमन होता है।
• मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से यह मुद्रा बौद्धिक स्थिरता प्रदान करती है, ब्रह्मचर्य शक्ति का विकास करती है, क्रोधादि प्रभावों का शमन करती है और साधक को मूल ध्येय के प्रति सचेष्ट करती हैं।
इस मुद्राभ्यास से स्वाधिष्ठान और मूलाधार चक्र जो हमारी समस्त शारीरिक ऊर्जा एवं जैविक विद्युत का संचयगृह हैं, उनका ऊर्वीकरण होता है। विशेष
• एक्यूप्रेशर के अनुसार दण्ड मुद्रा में जो बिन्दु प्रभावित होते हैं उनके माध्यम से अनावश्यक कफ दोष एवं वात दोष से मुक्ति मिलता है खाने सम्बन्धी आदतों में सुधार आता हैं, मस्तिष्क की गर्मी दूर होती है तथा मणिबन्ध से संबंधित रोग ठीक होते हैं। 42. पाश मुद्रा
पाश का सामान्य अर्थ है बंधन। संस्कृत कोश के अनुसार पाश एक शस्त्र है जो वरुण देवता द्वारा प्रयुक्त किया जाता है। __चिन्तन के आधार पर पाश मुद्रा के अनेक हेतु स्पष्ट होते हैं। जैसे इस मुद्रा को देखकर दिक्पाल देव अपने कर्तव्य के प्रति सचेत हो जाते हैं और रक्षा के निमित्त यौगिक बल का पूरा उपयोग करते हैं। इस मुद्रा के द्वारा दिक्पाल देवों को रक्षा करने का संकेत किया जाता है। जिससे ये देव विनाशकारी शक्तियों को बांधकर रखते हैं। इस मुद्रा को दिखाने से यदि कोई दुष्ट तत्त्व आराधना स्थल पर आ गया हो तो वह बंध जाता है और कार्य समाप्ति तक उपद्रव नहीं कर सकता।
अनुभवी साधकों के अनुसार यह मुद्रा बुरी शक्तियों को वश में करने एवं पराजित करने की भी ताकत रखती है, इसलिए इसे दृढ़ मनोबल का प्रतीक