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118... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
दस दिक्पालों को संतुष्ट करने हेतु उपयोगी मुद्राएँ 41. दण्ड मुद्रा
संस्कृत का ‘दण्ड' शब्द अनेक अर्थों का बोध करवाता है। सामान्य तौर पर डंडा, घड़ी, यष्टिका को दंड कहते हैं।
इस प्रकरण में दण्ड मुद्रा दस दिशाओं के रक्षक देवताओं को दिखाने के सम्बन्ध में कही गई है।
संभवत: दस दिशाओं के रक्षक देवों के हाथों में दण्ड रहता है। वे दण्ड को माध्यम बनाकर पूरे ब्रह्माण्ड की रक्षा करते हैं तथा अनिष्ट शक्तियों से होने वाले उपद्रवों को शान्त करते हैं।
यह दण्ड मुद्रा दश दिक्पालों को अपने कर्तव्य का बोध करवाने एवं साधक मन को सबल बनाने के उद्देश्य से की जाती है। विधि
"दक्षिण हस्तेन मुष्टिं बद्ध्वा तर्जनी प्रसारयेदिति दण्ड मुद्रा"।
दाएं हाथ को मुट्ठी रूप में बांधकर तर्जनी को प्रसारित करने से दण्ड मुद्रा बनती है।
दण्ड मुद्रा