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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......73 लौकिक जीवन में भी किसी को डराने-धमकाने के लिए तर्जनी अंगुली ही दिखायी जाती है। सभी अंगुलियों का अपना-अपना कार्य है। यहाँ तर्जनी अंगुली का प्रयोग दुष्टों को भयभीत करने के प्रयोजन से किया जाता है। विधि
"बद्धमुष्टेर्दक्षिण हस्तस्य प्रसारित तर्जन्या वामहस्ततलताडनेन त्रासनी
मुद्रा।"
दाहिने हाथ की बंधी हुई मुट्ठी से प्रसारित तर्जनी अंगुली के द्वारा बायीं हथेली के मध्य भाग को पीटने पर त्रासनी मुद्रा बनती है।
त्रासनी मुद्रा सुपरिणाम
• शारीरिक दृष्टि से इस मुद्रा का अभ्यास पंच प्राणों के प्रवाह को नियमित करता है। यह मुद्रा जठराग्नि को प्रदीप्त कर साधक में सूर्य प्रकाश की भाँति तेज प्रकट करता है। शरीर की पीयूष ग्रंथि और पिनियल ग्रंथियों के स्राव