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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......109 विकास करता है। इसके द्वारा अनाहत एवं विशुद्धि चक्र जागृत होने से कई तरह के अप्रत्याशित लाभ होते हैं। विशेष
• इस मुद्रा में हाथों की आकृति वृक्ष जैसी बनती है, इसलिए इसका नाम वृक्ष मुद्रा है।
• एक्यूप्रेशर मेरीडियनोलोजी के अनुसार वृक्ष मुद्रा वात दोषों को ठीक करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। इस मुद्रा के दाब बिन्दु से लकवा रोग, गला सूजन, मिरगी रोग, आत्मघात करने की सोच, पीलिया रोग, नाक से रक्त बहना आदि में आराम मिलता है।
• इस मुद्रा का विशेष प्रभाव थायमस ग्रंथि पर पड़ता है। यह मुख्य रूप से बालकों के विकास में सहयोगी बनती है। यह काम वासना पर नियंत्रण करते हुए साधक को क्रियाशील एवं स्फूर्ति युक्त बनाती है। 37. सर्प मुद्रा
भारतीय संस्कृति में आदिकाल से ही सर्यों का विशिष्ट स्थान रहा है। इस देश में सर्प को नागदेवता के रूप में माना एवं पूजा जाता है। भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग ढंग से नाग पूजा का त्योहार मनाने की भी प्रथा है। लोक कथानुसार श्रावण शुक्ला पंचमी के दिन नागों को प्रसन्न करने के लिए दूध पिलाया जाता है। राजस्थान में तेजादशमी के नाम से सर्प पूजा की जाती है। जाट समुदाय के विशेष आराध्य तेजाजी के उपासक अपने गले में अश्वारूढ़ व्यक्ति हाथ में नंगी तलवार लिए जीभ पर सर्प चित्रित तेजाजी की लघु प्रतिमा बांधे रहते हैं। राजस्थान के भू-भाग में श्रावण-भाद्र मास में प्राय: जहरीले सर्प विचरते हैं। ऐसे में पशुपालक एवं व्यापारी पशुओं की स्वास्थ्य कामना हेतु तेजाजी की तांती (धागा) बांधते हैं। चौहान वंशज गोगाजी को राजस्थान के पाँच पीरों में से एक मानते हैं। इस तरह राजस्थान में नाग की विविध रूपों में मान्यता है। ___ कुछ देशों में धर्म का मूल तत्त्व सर्प को माना गया है। पौराणिक मान्यतानुसार शेषनाग के एक फण पर सम्पूर्ण पृथ्वी टिकी हुई है। यदि वह फण हिल जाये तो पृथ्वी हिल जायेगी। इस तरह सर्प को समग्र संसार और पृथ्वी का आधार माना गया है।