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100... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा विधि ___'अधोमुखवामहस्तांगुलीर्घण्टाकाराः प्रसार्य दक्षिणकरेण मुष्टिं बवा तर्जनीमूां कृत्वा वामहस्ततले नियोज्य घण्टावच्चालनेन घण्टामुद्रा।"
बायें हाथ की अंगुलियों को अधोमुख कर उन्हें घण्टाकार के रूप में फैलायें, फिर दाहिने हाथ की मुट्ठी बांधकर उसकी तर्जनी अंगुली को ऊर्ध्वाभिमुख करें तथा उस तर्जनी को बायें हाथ के तल से संयुक्त कर घण्टा के समान चलाने पर घण्टा मुद्रा बनती है।
घण्टा मुद्रा सुपरिणाम
• शारीरिक दृष्टि से यह मुद्रा उदर सम्बन्धी रोगों में लाभ देती है। इससे पृथ्वी तत्त्व एवं अग्नि तत्त्व की कमी अथवा आधिक्य से होने वाली बीमारियों का उपचार होता है। वायुजनित तकलीफें दूर होती हैं। यह मुद्रा किडनी एवं मूत्राशय पर अच्छा प्रभाव डालती है।
यह मुद्रा कैन्सर, हड्डी की समस्या, कोकिक्स कठिनाईयाँ, कोष्ठबद्धता,