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92... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा पड़ने से, उनमें तरंगें प्रवाहित होने से तथा उन तरंगों का परिपथ बनने से सप्तचक्र प्रभावित होते हैं और कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है, जिससे चेतना ऊर्ध्वरेतस् बनती है।
इस तरह चक्र मुद्रा प्रतीक रूप में विभिन्न प्रयोजनों से की जाती है।
विधि
चळ मुद्रा ___"वामहस्ततले दक्षिणहस्तमूलं संनिवेश्य करशाखा विरलीकृत्य प्रसारयेदिति चक्रमुद्रा।"
बायीं हथेली के तल स्थान पर दायीं हथेली को अच्छी तरह रखते हुए एवं दोनों हाथों की अंगुलियों को पृथक-पृथक करते हुए फैलाने पर चक्र मुद्रा बनती है। सुपरिणाम
• दैहिक स्तर पर इसका अभ्यास प्राण शक्ति को नियन्त्रित करता है। इस मुद्रा का प्रयोग हृदय, उदर एवं फेफड़ें सम्बन्धी रोगों को दूर करने में परम उपयोगी है।