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78... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
23. ध्वज मुद्रा
ध्वज झंडे को कहते हैं। भारतीय धर्म की सभी संस्कृतियों में ध्वजा का आदरणीय स्थान है। ध्वजा आत्म उपासना की प्रतीक मानी गई है। सामान्यतया ध्वज मंगल, आनन्द, शुभता का सूचक है।
यहाँ ध्वज मुद्रा के अनेक अभिप्राय हैं। जैसे कि ध्वजा सम-विषम हर स्थिति में अनवरत लहराती रहती है, झंझावात के थपेड़ों को समभाव से सहती है। निष्प्रकम्प डंडे से संलग्न रहने पर भी हमेशा झुकी रहती है। इस मुद्रा को करते हुए प्रतीकात्मक रूप में तीर्थंकर देव के समक्ष यह प्रार्थना की जाती है कि हे भगवन्! हमारा ज्ञान रूपी दीपक सदैव प्रज्वलित रहें, अज्ञान रूपी झंझावतों से कभी बुझ न पाये। अनुकूल-प्रतिकूल समग्र परिस्थितियों में सन्मार्ग का अनुसरण करते रहें, घबराये नहीं। यही साधना का सम्यक परिणाम है।
जैसे एक बांस में एक ध्वजा ही रह सकती है वैसे ही ध्वज मुद्रा को दिखाते हुए यह भाव प्रकट किया जाता है कि इस अनुष्ठान में सभी देवों को
ध्वज मुद्रा