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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......43 को कोई आघात नहीं पहुँचा सकता, उस पर किसी तरह के बन्दूक की गोली का असर नहीं होता।
प्रतीकात्मक अर्थ की दृष्टि से कहें तो इस मुद्रा के द्वारा न केवल बाहरी आक्रमणों से शरीर की रक्षा होती है, अपितु अन्तरंग क्रोधादि शत्रुओं से भी चैतन्य शरीर प्रभावित नहीं होता।
इस प्रकार कवच मुद्रा बाह्य और आभ्यन्तर दोनों तरह के आक्रमणों से शरीर एवं आत्मा का संरक्षण करती है। विधि
"पुनर्मुष्ठिबन्धं विधाय कनीयस्यंगुष्ठौ प्रसारयेदिति कवच मुद्रा।"
हृदय मुद्रा के समान दोनों हाथों की मुट्ठी बांधकर एवं कनिष्ठिका अंगुली और अंगूठे को प्रसारित करने पर कवच मुद्रा बनती है।
कतामा
सुपरिणाम
कवच मुद्रा • शारीरिक तौर पर इस मुद्राभ्यास से हमारा शरीर सुदृढ़ वज्र की भाँति कठोर बनता है जो प्राकृतिक विपदाओं से लड़ने में शक्ति प्रदान करता है।