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मनि पिघुमणीचकति न विसरेरे भान॥२॥ घरम० ॥ ज्यूँ लोभी मन धनकी लालसा ॥ भोगी के मन भोग ॥ रोगी के मन माने
औषधी । जोगी के मन जोग |शोधरम०॥ इणपर लागी हो पूरण प्रीतडी ॥ जाव जीव परियत ॥ भव भव चाहूँ हो न पडै आंतरो भय अँजन भगवंत ॥४॥ धरम ॥ काम क्रोध मद मच्छर लोभथी ।। कपटी कुटिल कठो।। इत्यादि अवगुण कर हूँ मस्यौ । उदै कर्मकेरे जोर ॥५॥ धस्म ।। तेज प्रताप तुमारों पर
मटे ॥ भुज हिवड़ा में रे आय ॥ तो हूँ आ . तम निज गुण संभालनें।अनँत वली कहिवा।
॥६॥ धस्म ॥ भानू नृप सुबत्ता जननी तणौ ॥ अंग जात अमिराम ॥ बिनचंद नैरबल्लम तूं प्रभ ॥ सुध चेतन गुण धाम ।।