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ढकिए मोरंकंकाइए हयहसिएणं हत्थिगुलगुलाइएणं रघणघणाइए सेतं कजेणं ॥
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भाषार्थ :- श्री गौतम प्रभुजी श्री भगवान् से पूछते हैं कि, हे भगवन् ! वे कौनसा है शेषवत् अनुमान प्रमाण ! तब भगवान् प्रतिपादन करते हैं कि हे गौतम ! शेषवत् अनुमान प्रमाण पंच प्रकार से कहा गया है जैसे कि कार्य करके १ कारण करके २ गुण करके १ अवयव करके 8 आश्रय करके ५ ॥ फिर गौतमजीने प्रश्न कियाकि हे भगवन् ! वे कौनसा है शेषवत् अनुमान प्रमाण जो कार्य करके जाना जाता है ? तब भगवान् ने उत्तर दिया कि हे गौतम! जैसे शंख ( संख ) शब्द करके जाना जाता है अर्थात् शंखके शब्द को सुनकर संखका ज्ञान हो जाता है कि यह शब्द शंखका हो रहा है, इसी प्रकार भेरी ताडने करके, वृषभ शब्द करके, मयूर ( मोर ) कंकारव करके, अश्व शब्द करके अर्थात् हिंषन करके, हस्ति गुलगुलाट करके, रथ घण घण करके, यह कार्याधीन अनुमान प्रमाण है, क्योंकि उक्त वस्तुयें कार्य होने पर सिद्ध होती हैं अर्थात् कार्य होने पर उनका अनुमान प्रमाण द्वारा यथार्थ ज्ञान हो जाता है |